परिचय
साइमन कमीशन, जिसे आधिकारिक तौर पर भारतीय वैधानिक आयोग के रूप में जाना जाता है, ब्रिटिश सरकार द्वारा 1927 में भारत में संवैधानिक सुधारों का अध्ययन करने और सिफारिशें देने के लिए नियुक्त किया गया था। इस आयोग का नाम इसके अध्यक्ष सर जॉन साइमन के नाम पर रखा गया था। इस आयोग का गठन भारत में राजनीतिक उथल-पुथल और संवैधानिक सुधारों की बढ़ती मांग के जवाब में किया गया था। 1919 के भारत सरकार अधिनियम ने दस साल बाद एक आयोग की नियुक्ति का प्रावधान किया था ताकि अधिनियम के कामकाज की समीक्षा की जा सके। तदनुसार, साइमन कमीशन को 1927 में नियुक्त किया गया था, जो कि प्रत्याशित समय से दो साल पहले था। इसके परिणामस्वरूप पूरे भारत में व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए, क्योंकि इसमें कोई भी भारतीय सदस्य शामिल नहीं था। इस लेख में, हम साइमन कमीशन के इतिहास, संरचना, सिफारिशों और भारत पर इसके प्रभाव का विस्तार से विश्लेषण करेंगे।
साइमन कमीशन की नियुक्ति का मुख्य उद्देश्य भारत में संवैधानिक सुधारों का अध्ययन करना और सिफारिशें देना था। ब्रिटिश सरकार भारत के प्रशासन में भारतीयों की भागीदारी को और बढ़ाने के तरीकों पर विचार कर रही थी। आयोग को इस बात का आकलन करने का काम सौंपा गया था कि क्या भारत स्वशासन के लिए तैयार था और किन सुधारों की आवश्यकता थी। आयोग को विभिन्न राजनीतिक दलों, नागरिक समाज समूहों और अन्य हितधारकों के साथ परामर्श करना था ताकि वे भारतीय संवैधानिक विकास पर विभिन्न दृष्टिकोणों को समझ सकें। हालांकि, आयोग में किसी भी भारतीय सदस्य को शामिल नहीं करने के फैसले ने व्यापक आक्रोश और विरोध को जन्म दिया। भारतीयों ने महसूस किया कि उन्हें अपने भविष्य को आकार देने की प्रक्रिया से बाहर रखा जा रहा है। नतीजतन, साइमन कमीशन का भारत में व्यापक रूप से बहिष्कार किया गया।
साइमन कमीशन की संरचना में सात ब्रिटिश संसद सदस्य शामिल थे, जिनका नेतृत्व सर जॉन साइमन ने किया था। आयोग में क्लेमेंट एटली भी शामिल थे, जो बाद में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बने। आयोग में कोई भी भारतीय सदस्य शामिल नहीं था, जिसके कारण भारत में व्यापक विरोध हुआ। आयोग के सदस्यों को भारत में संवैधानिक सुधारों का अध्ययन करने और सिफारिशें देने का काम सौंपा गया था। उन्हें विभिन्न राजनीतिक दलों, नागरिक समाज समूहों और अन्य हितधारकों के साथ परामर्श करना था ताकि वे भारतीय संवैधानिक विकास पर विभिन्न दृष्टिकोणों को समझ सकें। आयोग ने 1928 और 1929 में भारत का दौरा किया और विभिन्न राजनीतिक नेताओं और समूहों के साथ साक्षात्कार किया। इसने प्रांतीय विधान परिषदों और अन्य स्थानीय निकायों से भी साक्ष्य एकत्र किए। आयोग ने भारत में संवैधानिक सुधारों पर दो खंडों में एक रिपोर्ट प्रस्तुत की। रिपोर्ट में प्रांतीय स्वायत्तता, केंद्र में द्वैध शासन और एक अखिल भारतीय संघ की स्थापना सहित कई सिफारिशें की गईं।
साइमन कमीशन का गठन
साइमन कमीशन का गठन भारत में संवैधानिक सुधारों का अध्ययन करने और सिफारिशें देने के लिए किया गया था। ब्रिटिश सरकार भारत के प्रशासन में भारतीयों की भागीदारी को और बढ़ाने के तरीकों पर विचार कर रही थी। 1919 के भारत सरकार अधिनियम ने दस साल बाद एक आयोग की नियुक्ति का प्रावधान किया था ताकि अधिनियम के कामकाज की समीक्षा की जा सके। तदनुसार, साइमन कमीशन को 1927 में नियुक्त किया गया था, जो कि प्रत्याशित समय से दो साल पहले था। आयोग को इस बात का आकलन करने का काम सौंपा गया था कि क्या भारत स्वशासन के लिए तैयार था और किन सुधारों की आवश्यकता थी। आयोग को विभिन्न राजनीतिक दलों, नागरिक समाज समूहों और अन्य हितधारकों के साथ परामर्श करना था ताकि वे भारतीय संवैधानिक विकास पर विभिन्न दृष्टिकोणों को समझ सकें। हालांकि, आयोग में किसी भी भारतीय सदस्य को शामिल नहीं करने के फैसले ने व्यापक आक्रोश और विरोध को जन्म दिया। भारतीयों ने महसूस किया कि उन्हें अपने भविष्य को आकार देने की प्रक्रिया से बाहर रखा जा रहा है। नतीजतन, साइमन कमीशन का भारत में व्यापक रूप से बहिष्कार किया गया।
साइमन कमीशन के गठन के पीछे कई कारण थे। सबसे पहले, ब्रिटिश सरकार भारत में राजनीतिक स्थिति के बारे में चिंतित थी। प्रथम विश्व युद्ध के बाद, भारत में राष्ट्रवादी आंदोलन मजबूत हो गया था। भारतीय नेता स्वशासन की मांग कर रहे थे। ब्रिटिश सरकार को डर था कि अगर वह भारतीय मांगों को पूरा नहीं करती है, तो भारत में क्रांति हो सकती है। दूसरा, ब्रिटिश सरकार 1919 के भारत सरकार अधिनियम के कामकाज से असंतुष्ट थी। अधिनियम ने भारत में द्वैध शासन की स्थापना की थी, जिसमें कुछ सरकारी विभाग भारतीय मंत्रियों के नियंत्रण में थे, जबकि अन्य ब्रिटिश अधिकारियों के नियंत्रण में थे। ब्रिटिश सरकार को लगा कि द्वैध शासन प्रणाली अक्षम है और इसने भ्रम और संघर्ष पैदा किया है। तीसरा, ब्रिटिश सरकार भारत में संवैधानिक सुधारों पर विभिन्न दृष्टिकोणों को समझना चाहती थी। आयोग को विभिन्न राजनीतिक दलों, नागरिक समाज समूहों और अन्य हितधारकों के साथ परामर्श करने का काम सौंपा गया था ताकि वे भारतीय संवैधानिक विकास पर विभिन्न दृष्टिकोणों को समझ सकें।
साइमन कमीशन के गठन का भारत में व्यापक रूप से विरोध किया गया था। भारतीय नेताओं ने आयोग में किसी भी भारतीय सदस्य को शामिल नहीं करने के फैसले की आलोचना की। उन्होंने महसूस किया कि उन्हें अपने भविष्य को आकार देने की प्रक्रिया से बाहर रखा जा रहा है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और मुस्लिम लीग सहित सभी प्रमुख राजनीतिक दलों ने आयोग का बहिष्कार करने का फैसला किया। पूरे भारत में विरोध प्रदर्शन हुए। प्रदर्शनकारियों ने "साइमन गो बैक" के नारे लगाए। ब्रिटिश सरकार ने विरोध प्रदर्शनों को दबाने के लिए कठोर कदम उठाए। कई प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया गया और जेल में डाल दिया गया। साइमन कमीशन के गठन ने भारत में राजनीतिक स्थिति को और खराब कर दिया। इसने ब्रिटिश सरकार और भारतीय लोगों के बीच अविश्वास और अविश्वास को बढ़ाया।
साइमन कमीशन की सिफारिशें
साइमन कमीशन ने भारत में संवैधानिक सुधारों पर कई सिफारिशें कीं। आयोग ने प्रांतीय स्वायत्तता, केंद्र में द्वैध शासन और एक अखिल भारतीय संघ की स्थापना सहित कई सिफारिशें कीं। आयोग की सिफारिशों को भारत में विभिन्न प्रतिक्रियाएं मिलीं। कुछ लोगों ने सिफारिशों का स्वागत किया, जबकि कुछ लोगों ने उनकी आलोचना की। आयोग की सिफारिशों को अंततः 1935 के भारत सरकार अधिनियम में शामिल किया गया।
प्रांतीय स्वायत्तता साइमन कमीशन की सबसे महत्वपूर्ण सिफारिशों में से एक थी। आयोग ने सिफारिश की कि प्रांतों को अधिक स्वायत्तता दी जानी चाहिए। प्रांतों को अपने स्वयं के मामलों का प्रबंधन करने की अधिक शक्ति दी जानी चाहिए। आयोग ने यह भी सिफारिश की कि प्रांतों में द्वैध शासन प्रणाली को समाप्त कर दिया जाना चाहिए। द्वैध शासन प्रणाली में, कुछ सरकारी विभाग भारतीय मंत्रियों के नियंत्रण में थे, जबकि अन्य ब्रिटिश अधिकारियों के नियंत्रण में थे। आयोग ने महसूस किया कि द्वैध शासन प्रणाली अक्षम है और इसने भ्रम और संघर्ष पैदा किया है। प्रांतीय स्वायत्तता को भारत में विभिन्न प्रतिक्रियाएं मिलीं। कुछ लोगों ने सिफारिश का स्वागत किया, जबकि कुछ लोगों ने इसकी आलोचना की। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने सिफारिश का स्वागत किया। कांग्रेस का मानना था कि प्रांतीय स्वायत्तता भारत को स्वशासन की ओर ले जाने में मदद करेगी। मुस्लिम लीग ने सिफारिश की आलोचना की। लीग का मानना था कि प्रांतीय स्वायत्तता मुसलमानों को नुकसान पहुंचाएगी।
केंद्र में द्वैध शासन साइमन कमीशन की एक और महत्वपूर्ण सिफारिश थी। आयोग ने सिफारिश की कि केंद्र में द्वैध शासन प्रणाली को स्थापित किया जाना चाहिए। केंद्र सरकार के कुछ विभाग भारतीय मंत्रियों के नियंत्रण में होने चाहिए, जबकि अन्य ब्रिटिश अधिकारियों के नियंत्रण में होने चाहिए। आयोग ने महसूस किया कि केंद्र में द्वैध शासन प्रणाली भारत को स्वशासन की ओर ले जाने में मदद करेगी। केंद्र में द्वैध शासन को भारत में विभिन्न प्रतिक्रियाएं मिलीं। कुछ लोगों ने सिफारिश का स्वागत किया, जबकि कुछ लोगों ने इसकी आलोचना की। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने सिफारिश की आलोचना की। कांग्रेस का मानना था कि केंद्र में द्वैध शासन प्रणाली भारत को स्वशासन की ओर ले जाने में मदद नहीं करेगी। मुस्लिम लीग ने सिफारिश का स्वागत किया। लीग का मानना था कि केंद्र में द्वैध शासन प्रणाली मुसलमानों के हितों की रक्षा करेगी।
एक अखिल भारतीय संघ की स्थापना साइमन कमीशन की एक और सिफारिश थी। आयोग ने सिफारिश की कि एक अखिल भारतीय संघ की स्थापना की जानी चाहिए। अखिल भारतीय संघ में ब्रिटिश भारत के प्रांत और रियासतें शामिल होनी चाहिए। आयोग ने महसूस किया कि एक अखिल भारतीय संघ भारत को एक मजबूत और अधिक एकजुट देश बनाने में मदद करेगा। एक अखिल भारतीय संघ की स्थापना को भारत में विभिन्न प्रतिक्रियाएं मिलीं। कुछ लोगों ने सिफारिश का स्वागत किया, जबकि कुछ लोगों ने इसकी आलोचना की। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने सिफारिश का स्वागत किया। कांग्रेस का मानना था कि एक अखिल भारतीय संघ भारत को एक मजबूत और अधिक एकजुट देश बनाने में मदद करेगा। मुस्लिम लीग ने सिफारिश की आलोचना की। लीग का मानना था कि एक अखिल भारतीय संघ मुसलमानों को नुकसान पहुंचाएगा।
साइमन कमीशन का प्रभाव
साइमन कमीशन का भारत पर गहरा प्रभाव पड़ा। आयोग की सिफारिशों को 1935 के भारत सरकार अधिनियम में शामिल किया गया। अधिनियम ने भारत में प्रांतीय स्वायत्तता की स्थापना की। अधिनियम ने केंद्र में द्वैध शासन प्रणाली की भी स्थापना की। अधिनियम ने एक अखिल भारतीय संघ की स्थापना का भी प्रावधान किया, लेकिन यह कभी भी स्थापित नहीं हुआ। साइमन कमीशन ने भारत में राजनीतिक स्थिति को और खराब कर दिया। इसने ब्रिटिश सरकार और भारतीय लोगों के बीच अविश्वास और अविश्वास को बढ़ाया। आयोग के गठन और सिफारिशों के विरोध ने भारत में राष्ट्रवादी आंदोलन को मजबूत करने में मदद की।
साइमन कमीशन की सिफारिशों को 1935 के भारत सरकार अधिनियम में शामिल किया गया। अधिनियम ने भारत में प्रांतीय स्वायत्तता की स्थापना की। प्रांतों को अपने स्वयं के मामलों का प्रबंधन करने की अधिक शक्ति दी गई। अधिनियम ने केंद्र में द्वैध शासन प्रणाली की भी स्थापना की। केंद्र सरकार के कुछ विभाग भारतीय मंत्रियों के नियंत्रण में थे, जबकि अन्य ब्रिटिश अधिकारियों के नियंत्रण में थे। अधिनियम ने एक अखिल भारतीय संघ की स्थापना का भी प्रावधान किया, लेकिन यह कभी भी स्थापित नहीं हुआ। 1935 के भारत सरकार अधिनियम ने भारत में राजनीतिक स्थिति को बदल दिया। अधिनियम ने भारतीयों को सरकार में अधिक भागीदारी दी। अधिनियम ने भारत को स्वशासन की ओर ले जाने में मदद की।
साइमन कमीशन ने भारत में राजनीतिक स्थिति को और खराब कर दिया। इसने ब्रिटिश सरकार और भारतीय लोगों के बीच अविश्वास और अविश्वास को बढ़ाया। आयोग के गठन और सिफारिशों के विरोध ने भारत में राष्ट्रवादी आंदोलन को मजबूत करने में मदद की। भारतीय नेता स्वशासन की मांग कर रहे थे। ब्रिटिश सरकार को डर था कि अगर वह भारतीय मांगों को पूरा नहीं करती है, तो भारत में क्रांति हो सकती है। साइमन कमीशन ने भारत में राजनीतिक स्थिति को और खराब कर दिया। इसने ब्रिटिश सरकार और भारतीय लोगों के बीच अविश्वास और अविश्वास को बढ़ाया। आयोग के गठन और सिफारिशों के विरोध ने भारत में राष्ट्रवादी आंदोलन को मजबूत करने में मदद की।
निष्कर्ष
संक्षेप में, साइमन कमीशन भारत में संवैधानिक सुधारों का अध्ययन करने और सिफारिशें देने के लिए ब्रिटिश सरकार द्वारा नियुक्त किया गया था। आयोग का गठन भारत में राजनीतिक उथल-पुथल और संवैधानिक सुधारों की बढ़ती मांग के जवाब में किया गया था। हालांकि, आयोग में किसी भी भारतीय सदस्य को शामिल नहीं करने के फैसले ने व्यापक आक्रोश और विरोध को जन्म दिया। भारतीयों ने महसूस किया कि उन्हें अपने भविष्य को आकार देने की प्रक्रिया से बाहर रखा जा रहा है। नतीजतन, साइमन कमीशन का भारत में व्यापक रूप से बहिष्कार किया गया। आयोग ने प्रांतीय स्वायत्तता, केंद्र में द्वैध शासन और एक अखिल भारतीय संघ की स्थापना सहित कई सिफारिशें कीं। आयोग की सिफारिशों को 1935 के भारत सरकार अधिनियम में शामिल किया गया। साइमन कमीशन का भारत पर गहरा प्रभाव पड़ा। आयोग के गठन और सिफारिशों के विरोध ने भारत में राष्ट्रवादी आंदोलन को मजबूत करने में मदद की।
साइमन कमीशन एक महत्वपूर्ण घटना थी जिसने भारत के इतिहास को आकार देने में मदद की। आयोग के गठन और सिफारिशों के विरोध ने भारत में राष्ट्रवादी आंदोलन को मजबूत करने में मदद की। 1935 के भारत सरकार अधिनियम ने भारतीयों को सरकार में अधिक भागीदारी दी। अधिनियम ने भारत को स्वशासन की ओर ले जाने में मदद की। साइमन कमीशन भारत के इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह हमें याद दिलाता है कि हमें अपने अधिकारों के लिए लड़ना चाहिए और हमें कभी भी हार नहीं माननी चाहिए। ब्रिटिश सरकार को भारत को स्वतंत्रता देने के लिए मजबूर होना पड़ा क्योंकि भारतीय लोग अपने अधिकारों के लिए लड़ने के लिए दृढ़ थे। साइमन कमीशन एक महत्वपूर्ण सबक है जो हमें यह सिखाता है कि हमें कभी भी हार नहीं माननी चाहिए और हमें हमेशा अपने अधिकारों के लिए लड़ना चाहिए।
मुझे उम्मीद है कि यह लेख साइमन कमीशन के बारे में अधिक जानने में आपकी मदद करेगा। यदि आपके कोई प्रश्न हैं, तो कृपया मुझे बताएं। धन्यवाद!
Lastest News
-
-
Related News
Exploring Toyota Highlander Models: A Comprehensive Guide
Jhon Lennon - Nov 17, 2025 57 Views -
Related News
Smriti Mandhana Net Worth: Income, Assets, And Career
Jhon Lennon - Oct 31, 2025 53 Views -
Related News
Nissan Headquarters Japan: Find The Address & Contact Info
Jhon Lennon - Nov 17, 2025 58 Views -
Related News
1955 Sandy Koufax Rookie Card PSA 7: A True Gem
Jhon Lennon - Oct 31, 2025 47 Views -
Related News
Your Guide To Oscosseosc, Scnewssc In Yuba City
Jhon Lennon - Nov 17, 2025 47 Views